भारतीय चित्रकला का इतिहास बेहद्द गहरा व प्राचीन रहा है। भारतीय चित्रकलाओं का नाम भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में भली भाँती जानता है । भारतीय चित्रकलाएं संपूर्ण जगत में बेहद प्रसिद्द रही हैं। गुफाओं व अन्य साहित्यिक अवशेषों के आधार पर यह स्पष्ट है की भारत एक कला के रूप में “चित्रकला” बहुत ही प्राचीन काल से प्रचलित रहा हैं। भारतीय चित्रकला धार्मिक भावनाओं से प्रेरित थ। धार्मिक भावना सेही प्रेरित पिछवाई चित्रकला भारतीय चित्रकला जगत में बेहद प्रसिद्ध है। यह चित्रकला अपने प्राकृतिक चटक रंगों व खूबसूरती
के लिए जाने जाते है। यह चित्रकला भगवन श्रीकृष्ण को नायक के रूप में बनाया जाता है।यह चित्रकला राजस्थान में बहुत ही प्रसिद्द है।
“पिछवाई चित्रकला”
पिछवाई चित्रकला मुख्य रूप से कलाकार कपड़ों पर भगवान् श्री कृष्ण जी के जीवन कला की चित्रकारी करते हैं। पिछवाई शब्द का अर्थ है पीछे वाली एवं टांगी हुई पिछवाई चित्र आकर में बहुत बड़े होते हैं। यह चित्रकारी कपड़ो पर की जाती है। यह चित्रकला राजस्थान के उदयपुर से करीब ५० किलोमीटर दूर राजसमन्द जिले में स्थित छोटा सा धार्मिक नगर ” नाथद्वारा “पुष्टिमार्गीय दुर्लभ सम्प्रदार्य की पीठ है। नाथद्वारा चित्र शैली का ही महत्वपूर्ण अंग पिछवाई चित्रकला हैं।
श्रीनाथ जी मंदिर व नाथद्वारा के श्रीनाथ जी से सम्बंधित उस पर्याप्त क्षेत्र में श्रीनाथ जी की प्रतिमा को पीछे दीवार पर लगाने के लिए विशाल पिछवाई चित्रों का ही निर्माण किया जाता है। यह चित्र भगवन श्रीनाथ आश्रय व भव्यता बनाने के साथ साथ श्रीनाथ जी जीवन चरित्रों को भी दर्शाते है। इन चित्रकलाओं में श्रीनाथ जी के जीवन चरित्र के साथ साथ उनसे सम्बंधित सामग्रियों का भी उपयोग उन चित्रकलाओं में दर्शाया जाता है। जैसे मोर पंख का उपयोग हर चित्रकारी में देखा जा सकता ह व कमल के फूल का भी चित्रण उन चित्रकलाओं में दर्शाया जाता है।
“विषय “
नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के मंदिरों में प्रतिदिन अलग अलग पिछवाई कलाकृतियों से सजाया जाता है। श्रीनाथ जी द्वारा उनके जीवन समबन्धों के अनुसार हर दिन पिछवाई कलाकृतिओं से सजाई जाती है। यह समस्त कलाकृति श्रीनाथ जी को समर्पित है। इसलिए उनके सारे रूप, विष्णु के १० अवतार ,उनकी लीलाएं , निकुंजलीला, गोवर्धनधारी, होली,माखनचोरी,कृष्णजन्म,आदि से सम्बंधित होते हैं।
पिछवाई चित्रकला मौसम के अनुसार व त्योहारों के अनुसार भी बदला व डिज़ाइन किया जाता है। पिछवाई चित्रों में श्रीकृष्ण व राधा की प्रेम लीलाएं भी शामिल है। निकुंजलीला भी इन चित्रकलाओं में दिखाई जाती है। कई बार यमुना नदी व कमल का फूल व मोर पंख आदि स्वरुप भी इन चित्रकलाओं में देखने को मिलता है। इन चित्रकलाओं में श्रीकृष्ण जी के गाय के साथ खेलने व ग्वालों का भी सुन्दर दृश्य भी प्रस्तुत किया जाता है।
“विधि”
पिछवाई चित्रकला के कलाकार श्रीनाथ जी के प्रेमी होते हैं। वे जन्म से ही श्री नाथ जी के उपासक होते हैं।
यह चित्रकला कई चरणों से होकर गुजरती है। इसमें धैर्य व कुशलता की जरुरत होती है। इसकी शुरुआत कैनवास के कपड़े पर बेस बनाने से होती है। एक पिछवाई चित्रकारी पूरी करने में कई दिन या कई महीनों भी लग जाते हैं। सारे रंग प्राकृतिक होना भी पिछवाई चित्रकला को और खूबसूरत बनाते हैं। इस चित्रकला की चमक का कारण असली सोना व सोने के पत्ते व सोने के स्याही का उपयोग किया जाता है। चित्रकला में बॉर्डर की चित्रकारी कोई पर्याप्त कलाकार करता है। जिसमें फूल व बहुत सारे पत्ते की चित्रकारी की जाती है। पिछवाई चित्रकारी करते समय बारीकी के बेहद्द ख्याल रखता जाता है।
“आधुनिकीकरण”
वर्तमान में पिछवाई चित्रकला को कलाकारों ने भारत ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है। विदेशों में भी पिछवाई चित्रकलाओं के डंका ज़ोरो से बज रहा है जो बहुत ही सराहनीय है । आज के ज़माने में इस चित्रकला को कई लोगों ने व्यापार का माध्यम भी बनाया है। कई लोगो ने पिछवाई चित्रकला को डिजिटल फॉर्म में नक़ल करके भी बेचते हैं। जिस से पिछवाई चित्रकला के कलाकारों का मनोबल नकारात्मक दिशा में जाता दिख रहा है।
वर्तमान में पिछवाई का अलग स्वरुप भी बनकर सकारात्मकता से निखरा भी है। पिछवाई को थोड़ा आधुनिक बनाकर व नए प्रसंग जोड़कर भी इस चित्रकला को बहुत ही बढ़ावा मिला है। आधुनिकरण में किसी एक रूपक या किसी एक पर्याप्त प्रसंग को लेकर जैसे गाय , कमल , यमुना नदी आदि की चित्रकलाओं का भी चित्रण किया जा रहा है जो बहुत ही सराहनीय है। वर्तमान में नाथद्वारा में जहाँ श्रीनाथ जी की विशाल चित्रों का निर्माण किया जाता था ,वही वर्तमान में अब छोटी छोटी चित्रकलाओं का निर्माण भी किया जा रहा है।
नयी पीढ़ी भी इन चित्रकारी में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही व उनकी रूचि भी इस ओर , इन चित्रकलाओं के निर्माण हेतु बहुत देखी जा रही है ।।
डियोरामा डिज़ाइन्स द्वारा बनाई गई पिछवाई चित्रकला में सुंदर शैली का एक आदर्श उदाहरण है। ये एक ऐसी कला है जो बहुत ही नोबेल होती है। इसके अंदर एक छोटा सा खुला हुआ पेंटिंग होता है जो कि म्यूरल या फ्रेस्को के समान होता है। ये मुरल खुली हुई होती है और उसमें एक छोटे से सीन पेंट होता है जो कि 3 डायमेंशनल इफेक्ट देता है। डियोरामा डिजाइन्स की पिचवाई पेंटिंग्स में बहुत ही नोबेल और सुंदर शैली होती है। इनमें छोटे से सीन पेंट होते हैं जो कि 3 डायमेंशनल लगते हैं। चित्रों में अक्सर राधा कृष्ण के दृश्य दिखाते हैं।