भारतवर्ष विभिन्नताओं के साथ साथ विविधताओं का देश है, विवधताओं में कईं भिन्न भिन्न प्रकार की संस्कृति, भाषा बोली जाती है। पौराणिक समय से भी भारत की कलाकृतिओं का बोलबाला सराहनिय है। भारतवर्ष की कलाकृतियों का इतिहास बेहद सुनेहरा और खूबसूरत है। कलंतर में भारतवर्ष में चित्रकलाओं का नवजागरण हुआ परंतु जिसमें से कुछ नष्ट हो गए और कुछ को आज के दौर में भी अभ्यास में लिया जाता है। जैसे “मधुबनी चित्रकला”, यह चित्रकला बेहद खूबसूरत होने के साथ साथ बहुत सारे तथ्य भी सामने लाती हैं।
मधुबनी चित्रकला क्या है?
मधुबनी चित्रकला एक लोककला है। यह चित्रकला बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, विशेष रूप से मधुबनी की प्रमुख चित्रकला है। यह चित्रकला नेपाल के भी क्षेत्रों में भी प्रसिद्ध है। यह चित्रकला प्राचीन चित्रकलाओं में से एक है। मधुबनी चित्रकला अपने प्राकृतिक चटक रंगो से प्रसिद्ध है। इनमें प्रयोग किए जाने वाले रंग चावल के आटे , हल्दी, चंदन, पराग, वर्णक, गाय का गोबर, मिट्टी व अन्य प्रकृति से स्रोतों से प्राप्त होता है। मधुबनी चित्रकला भारतवर्ष में सुंदर होने के साथ साथ शुद्धाता व पवित्रता का भी उदाहरण देता है।
मधुबनी चित्रकला की विधि?
मधुबनी चित्रकला शैली में चटक रंगों का प्रयोग किया जाता है। इस चित्रकला को सभी प्राकृतिक वस्तुओं से बनाया जाता है जैसे हल्दी, केले के पत्ते, दूध, इत्यादि। प्रकृति नजारे जैसे सूर्या वा चंद्रमा, धार्मिक पेड़ पौधे, विवाह के दृश्य देखने को मिलते हैं। इन चित्रकलाओं को बैठक या दरवाजे पर बनाया जाता है। चित्रकला को उकेरने के दौरान चीज़ो की शुद्धता व पवित्रता का ध्यान बारीकी से रखा जाता है।वर्तमान में जिस कागज पर निर्माण किया जाता है वह कागज भी हस्त निर्मित होता है। फ़िर इसमें बबूल का गोंद डाला जाता है। सूती कपड़े से गोबर के घोल को कागज पर लगा दिया जाता है पश्चात धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है।
आधुनिक ब्रश की बजाये चित्रकला में पतली टहनी, माचिस,उंगलिओ और परम्परागत वस्तुओं का इस्तमाल किया जाता है गहरा लाल रंग, हरा, नीला और काला रंग इस्तमाल किया जाता है कुछ हल्के रंगो का भी उपयोग किया जाता है। कलाकार इस मनमोहक कलाकृति से लोगो का मन लुभाते हैं।
“आधुनिक मधुबनी चित्रकला”
मधुबनी चित्रकला पौराणिक काल से ही दीवारों पर बनाये जाने की परंपरा रही है।
इस दौर में यह परम्परा दीवारों पर प्लास्टर के कारण विलुप्त होती दिख रही है पर कई कलाकार इस आधुनिकीकरण में भी दीवारो पर भी अपने कलाचित्रों का प्रदर्शन दिखा रहे हैं। मधुबनी चित्रकला आधुनिक जीवन में अब के कलाकार कपड़ो और कागज पर कर रहे हैं।
आधुनिकीकरण में पुरुषों ने भी मधुबनी चित्रकला में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है।वर्तमान में यह चित्रकला बिहार के मिथिला से निकलकर अन्तराष्ट्र्य स्तर पर उभरा है। वर्त्तमान में मधुबनी चित्रकला कई लोगो के आए का श्रोत भी बना हैं।
दिल्ली के सूरजकुंड में लगे जाने वाले शिल्प के मेले में भी मन लुभाने वाली मधुबनी चित्रकलाओं से निर्मित शिल्प व कपड़े देखने मिलते हैं। सूरजकुंड मेले में मधुबनी चित्र के कलाकार बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। यह शिल्प व इस कला से निर्मित कपडे विदेशी सैलानियो का भी मन मोह लेते हैं। अब यह चित्रकला दीवार, आंगन, नहीं बल्की मधुबनी चित्रकारी को साड़ी, कुशन, परदे, कैनवास, पर भी चित्रित किया जाता है।
“मधुबनी शैली व प्रकार”
मधुबनी चित्रकला की 5 शैली हैं- भरनी, कचनी, तांत्रिक, गोदना, और कोहबर।
हालांकी मुख्यतः मधुबनी चित्रकला 2 तरह की ही होती है – “भित्ति चित्र” और “अरिपन”।
-मधुबनी भित्ति चित्र घर के तीन खास जगह पर बनाने की परंपरा है। जैसे पूजास्थान, कोहबर यानि नवविहातों के कक्ष में यह चित्रकला दर्शाना बहुत अच्छा पावन माना गया है व किसी विशेष उत्सव पर, घर की बाहरी दीवार पर दर्शाना प्रसिद्ध है। मधुबनी चित्रकला में हिंदू देवी देवताओं का चित्रण किया जाता है जैसी काली, दुर्गा, सीता राम, राधा कृष्ण, विष्णु के 10 अवतार आदि। मधुबनी चित्रकलाओं में कई प्रकृति और राम्या दृश्यों की भी चित्रकारी की जाती है।
-मधुबनी अरिपन चित्रकला हर सुअवसर व विशेष उत्सवों में “मिथिला” क्षेत्र के हर आंगन वा उनकी दीवारो पर चित्रकारी करने की प्राचीन प्रथा है। आंगन में जो चित्रकारी की जाती है वही अरिपन “अल्पना” चित्रकला कहलाता है।
“इतिहास”
मधुबनी चित्रकला का इतिहास पौराणिक भारतवर्ष के रामायण के समय से जुड़ा हुआ है। महाराज जनक ने रामसेतु के विवाह के सुअवसर पर उस क्षेत्र की महिला कलाकारो से कई मधुबनी चित्रकारी कराई। उन्होंने पूर्ण महल व सारे नगर को उन चित्रकलाओं से सजवाया था।
मधुबनी चित्रकला उस काल में सिर्फ महलियों द्वारा ही की जाति थी परंतु वर्तमान में मधुबनी चित्रकला पुरुषो द्वारा भी किया जा रहा है। यह चित्रकला उस समय सिरफ बिहार के कुछ क्षेत्रों में सीमित थी । परंतु वर्तमन में न सिर्फ भारत, यह चित्रकला अन्य देशों में भी लोकप्रिय है।
1960 के प्राकृतिक आपदा के व भारत की अर्थव्यवस्था के स्तर गिर जाने के कारण, मधुबनी भी आर्थिक रूप से कमजोर हो गया था। अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड ने वहां की महिलाओं को अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए दीवार पर की जाने वाली चित्रो को कागज में स्थानान्तरित्त होने को अपील किया।धीरे धीरे मधुबनी चित्रकला वहां के आय का श्रोत बना।